राजीव मल्होत्रा का कॉलम:एआई टेक्नोलॉजी हमारे मन को मैनेज क्यों कर रही हैं?
व्यक्तियों की भावनाओं को बदलने के लिए निजी अनुभवों को टेक्नोलॉजी निर्मित करने लगी है। मनुष्यों की कमजोरियों और संवेदनशीलता पर सक्रिय शोध चल रहा है। जब स्क्रीन पर कोई पॉप-अप प्रकट होता है, तो मशीन-लर्निंग प्रणाली इसे ट्रैक करती है कि कौन-से संदेशों को उपयोगकर्ताओं द्वारा देखे जाने की अधिक संभावना है। जो प्रतिक्रियाएं आती हैं उन्हें रिकॉर्ड किया जाता है और डेटाबेस में एकत्रित किया जाता है। एआई प्रणालियां इनका उपयोग करके प्रत्येक व्यक्ति के मनोविज्ञान का नक्शा तैयार करती हैं।
उदाहरण के लिए उपयोगकर्ता द्वारा अभी हाल में खोजे गए उत्पाद के विज्ञापन दिखाने पर, उसका ध्यान उस विज्ञापन की ओर जाने की कितनी संभावना है? या किसी विशिष्ट राजनीतिक षड्यंत्र की चर्चा या चिंताजनक घटना के समाचार द्वारा उसका ध्यान आकर्षित करना कितना संभव है?
एआई मॉडल ये भी भलीभांति जानते हैं कि कोई व्यक्ति खुशामद से कितना प्रभावित होता है या फिर उसे उसके अहंकार को तुष्ट करने वाली तकनीकों के झांसे में कितनी आसानी से फंसाया जा सकता है। साथ ही ये मशीनें ये जानने में भी माहिर होती हैं कि व्यक्ति के नीरस जीवन को किस तरह के मनोरंजनात्मक डिस्ट्रैक्शन से रोचक बनाएं।
करोड़ों लोगों की भावनाओं, पसंदों, अरुचियों, प्राथमिकताओं और कमजोरियों का मानचित्रीकरण बड़े ही वैज्ञानिक तरीके से हो रहा है। उनकी गतिविधियों को अनेक रूपों में रिकॉर्ड किया जा रहा है। उदाहरण के लिए आवाज, अक्षर, छवियां, हस्तलेखन, बायोमेट्रिक्स, खरीदारी से संबंधित व्यवहार, परस्पर वार्तालाप, यात्रा के विकल्प और मनोरंजन से संबंधित पसंदें। मशीनें न केवल निजी जानकारी को पकड़ने में कुशल हो गई हैं, बल्कि मानव गतिविधियों में निहित प्रयोजनों को भी वे अच्छी तरह से समझने लगी हैं।
एआई अनुसंधानकर्ता अब व्यक्तियों के इन मॉडलों के अलावा समुदायों और संस्कृतियों की भी मॉडलिंग कर रहे हैं। यह डेटा ऐसी मनोवैज्ञानिक प्रोफाइलें विकसित करने में मदद करता है, जिनका उपयोग मानव-समूहों में हेर-फेर करने या विशिष्ट आदतों और रुझान रखने वाले समूहों को प्रभावित करने के लिए हो सकता है।
उदाहरण के लिए, ऐसी प्रणालियां इसकी व्याख्या कर सकती हैं और समझ सकती हैं कि कैसे उइगर चीनी अन्य चीनियों के मुकाबले भावनात्मक स्तर पर भिन्न हैं। एआई समूहों के विशिष्ट मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक नक्शों को निश्चित कर सकती है, चाहे वे अमेरिका के एफ्रो हों या गोरे। वे अमेरिका में रह रहे पंजाबी, दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के छात्र, पश्चिम बंगाल के वामपंथी उपद्रवकारी या कोई भी ऐसा दूसरा मानव-समूह हों, जिसकी आप कल्पना कर सकते हैं।
इन मनोवैज्ञानिक प्रोफाइलों के उपयोग से सोशल मीडिया को एक हथियार के रूप में बदला जा सकता है। एक ऐसा हथियार, जिससे किसी भी व्यक्ति की निजी भावनाओं में बदलाव किया जा सकता है। इसके लाभार्थी स्वयं वह सोशल मीडिया मंच हो सकता है, जैसे- फेसबुक और गूगल या फिर उनके ग्राहक, प्रतिस्पर्धी, राजनीतिक उम्मीदवार या कोई भी अन्य व्यक्ति, जो किसी लक्षित समूह को प्रभावित करना चाहता है।
इस तरह के निजी मनोवैज्ञानिक मॉडल, उन्हें प्राप्त होने वाले फीडबैक से निरंतर सीखते जाते हैं और अधिक चतुर होते जाते हैं। कृत्रिम वास्तविकता से जुड़ी कई प्रकार की प्रणालियां इस समय विकसित की जा रही हैं : वीआर (वर्चुअल रियलिटी), जो आभासी परिवेश देती हैं; और एआर (ऑगमेंटेड रियलिटी) जो भौतिक परिवेश को अधिक रोचक बनाने के लिए उसे मॉडिफाई करती हैं।
आज करोड़ों लोगों की भावनाओं, पसंदों, अरुचियों, प्राथमिकताओं और कमजोरियों का मानचित्रीकरण बड़े ही वैज्ञानिक तरीके से हो रहा है। उनकी गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जा रहा है। यह सब डेटा आखिर किसके काम आएगा?
इनका लक्ष्य व्यक्ति की पहले से ही जान ली गई जरूरतों के अनुसार अनुभवों को निजी बनाना है। प्रारंभ में यह टेक्नोलॉजी वियरेबल उपकरणों से अनुभवों को मनपसंद बनाएंगी। बाद में शरीर में लगाए जाने वाले इम्प्लांट्स उनका स्थान ले सकते हैं।









