सोशल मीडिया के प्रति लापरवाह नज़रिया

चीन ने विदेशी सोशल मीडिया को प्रतिबंधित करके स्वयं के डिजिटल तंत्र का निर्माण किया। जबकि भारत, अमेरिकी सोशल मीडिया का सर्वश्रेष्ठ उपभोक्ता होने में गौरान्वित अनुभव करता है और दोनों बाहें पसार के उनका स्वागत करता है।

पिछले दिनों ट्रिटर, फेसबुक इत्यादि द्वारा डोनाल्ड ट्रम्प पर स्थायी रूप से लगाए गए निलंबन ने और वॉट्सऐप की नयी डेटा नीतियों पर हुई घोषणाओं ने अचानक ही भारतीयों को एक कटु सत्य से परिचित करवा दिया, कि विदेशी सोशल मीडिया (सामाजिक संचार माध्यम) पर निर्भर होने का अर्थ है अपने राष्ट्र की सुरक्षा पर संकट मोल लेना। परन्तु अभी भी इस विषय के सम्पूर्ण प्रयोजन को समझा नहीं गया है। अधिकांश बाद विवाद राजनैतिक सन्दर्भों से गठित है। जैसे वामपंथी बनाम दक्षिणपंथी, जिसमें ट्रम्प पर लगाए गए प्रतिबन्धको उनके विरुद्ध वामपंथियों के एक षड्यंत्र के रूप में देखा गया। दुर्भाग्यवश कई सामान्यतः बुद्धिमान, सार्वजनिक वक्ताओं ने भी इस बड़ी समस्या को अनदेखा कर दिया है कि भारत, संयुक्त राज्य 1 अमेरिका की, सोशल मीडिया कंपनियों का उपनिवेश बन गया है।

इस अंधेपन की नींव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दूरगामी प्रभाव को समझ पाने में भारतीयों की कमी है भारतीयों ने इस तकनीक के प्रमुख चालक के रूप में, सार्वजनिक और निजी डेटा की भूमिका को नहीं समझा है। भारतीयों को यह अति शीघ्र ही समझ लेना चाहिए कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक हथियार है, जो कि उपयोग अनुसार मानव मन और बुद्धि का उचित या अनुचित रूप से विस्तार कर सकता है। बुद्धि का किसी के विरुद्ध उपयोग करने में कोई वामपंथ या दक्षिणपंथ जैसी बात नहीं है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तो इसी प्रसंग में मात्र एक बल वृद्धि करने का माध्यम है। भारतीयों की ए. आई के प्रति अतिसंवेदनशीलता का कारण मात्र वामपंथी बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक ही सीमित नहीं है।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान, जब में अपनी पुस्तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड द फ्यूचर ऑफ पावर’ को अंतिम रूप दे रहा था और जिसका अभी कुछ दिन पूर्व ही विमोचन हुआ है, मैंने कई सामाजिक बुद्धिजीवियों से तर्क किया कि जब भी वे किसी सोशल मीडिया वेबसाइट पर क्लिक करते हैं, तो उसी समय इन बड़ी बहुराष्ट्रीय टैंक कंपनियों की मशीन शिक्षा प्रणालियों उनके व्यक्तिगत जीवन में प्रविष्ट हो जाती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लाइक, डिसलाइक, टिप्पणियाँ और पोस्टस इन सभी आंकड़ों का उपयोग मनोभाव विश्लेषण के लिए किया जा रहा है। किसी भी ब्रांड, आध्यात्मिक मत, विचारधारा, सामाजिक समस्या, राजनीति इत्यादि को लेकर प्रत्येक व्यक्ति के क्या मनोभाव होते हैं? इसके द्वारा सोशल मीडिया मंच सुनिश्चित करते हैं कि वह रूचि अनुसार चुनिंदा संदेशों, पोस्ट्स और विज्ञापनों को ही आपके पास भेजें। उपभोक्ता द्वारा की गई प्रत्येक गतिविधि, ए.आई. तंत्र के व्यक्ति व्यवहार सम्बंधित मॉडल को और भी सशक्त बनाती है यह मॉडल्स समय के साथ व्यक्ति के व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने और यहाँ तक कि उसको चालाकी से नियंत्रित करने में भी निपुण हो जाते हैं लाखों लोगों की भावनाओं, रुचिओं, अरुचिओं, प्राथमिकताओं और कमज़ोरियों के इस संज्ञानात्मक मानचित्र का निर्माण किया जा रहा है। इस कार्य को कई प्रकार से जैसे ध्वनि, चित्र, हस्तलिपि, बॉयोमीट्रिक्स, क्रय की लतों, पारस्परिक संचारों इत्यादि के माध्यमों से किया जा रहा है। ए.आई. शोधकर्ताओं ने इन भविष्य सूचक मॉडलों को न केवल व्यक्ति विशेष के लिए ही निर्मित किया है अपितु समुदायों, संस्कृतियों और राष्ट्रों के लिए भी निर्मित किया है। इस प्रकार के मॉडल्स व्यक्ति एवं समुदायों की विशिष्ट आदतों या प्रवृत्तियों का लाभ उठाकर उनका प्रयोग प्रतिक्रियाओं के पूर्वानुमान एवं उनका कुशलतापूर्वक परिवर्तन करने में या किसी समूह पर प्रभाव डालने के लिए कर रहे हैं। ये मनोवैज्ञानिक प्रालेख, सोशल मीडिया मंचों को ऐसे हथियारों से सज्जित करते हैं जिनके द्वारा ये किसी भी व्यक्ति की निजी मनोवृति को कुशलतापूर्वक परिवर्तित कर सकते हैं। किन्तु ये सब किस उद्देश्य के लिए? जिनके पास भी इस मंच का नियंत्रण है, उनको लाभ पहुंचाने के लिए लाभार्थी स्वयं डिजिटल मंच भी हो सकते हैं, जैसे ट्रिटर, फेसबुक, गूगल या इनके व्यावसायिक ग्राहक — विज्ञापक, राजनैतिक पदाभिलाषी या कोई अन्य, जो भी किन्हीं पूर्व निर्धारित लोगों को प्रभावित करने के इच्छुक हों और इसके लिए पैसा दें सकें फेसबुक, यूट्यूब एवं ट्विटर उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार के अनुभव प्रदान करते हैं जिनको अस्वीकार करना उनके लिए अत्यंत कठिन होता है फेसबुक की कूटनीति, लोगों की भावनात्मक लालसाओं को बढ़ावा देती है और उनको विचलित करके ये समझने में असक्षम बना देती है कि वे उत्साहित होकर अपनी व्यक्तिगत जानकारी उनको सौंप रहे हैं, और ऐसा करके वे डिजिटल मंचों को और सशक्त बना रहे हैं। अधिकांश उपभोक्ता ये समझ नहीं पाते और अपनी सामाजिक आवश्यकताओं की ऑनलाइन आपूर्ति करने के चक्कर में इसके

दीर्घकालीन परिणामों से भी अनभिज्ञ रह जाते हैं।

विदेशी कॉपरेशनों में इतनी अपरिमित शक्तियों के निहित होने से भारत विरोधी समूह – जिनको मैंने भारत विखंडन शक्तियों का नाम दिया है और भी सुनियोजित हो रहे हैं। भारत विखंडन शक्तियाँ, अपने लक्ष्य की पूर्ती के लिए ए.आई. का प्रयोग करके भारतीयों को मनोवैज्ञानिक रूप से विभाजित कर कई प्रतिपक्षी छावनियाँ निर्मित कर रही हैं और तत्पश्चात इनको आपस में लड़वाना चाहती हैं। इनका लक्ष्य, सम्पूर्ण राष्ट्र में भी इसी प्रकार के मतभेद और द्वंद्व उत्पन्न करना है। एआई एक बल गुणक है जिसका प्रयोग राष्ट्र, राजनैतिक दलों एवं समाज की एकता को क्षीण करने हेतु किया जा सकता है। चतुराई से किसी भी व्यक्ति के व्यवहार का गूढ़ अध्ययन करके एवं उसे असत्य समाचार देके, उसकी मनोवृत्ति और सामाजिक मान्यताओं को परिवर्तित किया जा सकता है। इसके राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

फिर भी, भारतीय विचारक, अज्ञानता एवं अस्वीकारिता में जी रहे हैं। इन सभी आशंकाओं के पश्चात भी, भारतीय इस बात को लेकर किंचित भी चिंतित नहीं दिखाई पड़ते कि विदेशी डिजिटल मंच करोड़ों लोगों पर सम्पूर्ण रूप से भावनात्मक नियंत्रण कर लेंगे। भारतीय समाजशास्त्रिओं, सरकारी अधिकारियों, न्याय विशेषज्ञों एवं शिक्षा विशेषज्ञों ने एआई को पूर्णतया जाना ही नहीं है। विडम्बना यह है कि भारतीय सामाजिक बुद्धिजीवी, सोशल मीडिया के सितारे, पत्रकार एवं राजनैतिक तर्कशास्त्री ये सभी भारत को पुनः उपनिवेश बनाने में लिप्त डिजिटल संचार मंचों के समर्थन में खड़े हैं। क्योंकि ये इन विदेशी सोशल मीडिया मंचों से ही अपनी पहचान बनाते हैं एवं अपने व्यक्तित्व के बारे में डींगें हाँकते हैं। इनकी यह प्रसिद्धि एक बनावटी नींव पर आधारित होती है और जिसके तार दूर स्थानों से नियंत्रित किये जाते हैं। चीन ने विदेशी सोशल मीडिया को प्रतिबंधित करके स्वयं के डिजिटल तंत्र का निर्माण किया। जब कि भारत, अमेरिकी सोशल मीडिया का सर्वश्रेष्ठ उपभोक्ता होने में गौरान्वित अनुभव करता है और दोनों बाहें पसार के उनका स्वागत करता है। भारत स्वयं के विक्रय के लिए प्रस्तुत है! इसमें सर्वप्रथम आने के लिए भारत में, अचानक भगदड़ आरम्भ हो चुकी है।